[Chhath Puja*] जानिऐ छठ पूजा का इतिहास, ऐसे शुरु हुई सूर्य और छठी मैया का त्योहार
हिन्दू धर्म में सूरज तथा चंद्र की गतियों पर based fast व्रत और त्योहार festival को मनाए जाते हैं। प्राचीन समय के समय में सौरमास का ज्यादा महत्व था लेकिन परंपरा से बाद में चंद्र पर आधारित व्रतों का महत्व बढ़ गया। सूर्य पर आधारित व्रत और त्योहार में संक्रांति और Chhath Puja पूजा का ज्यादा चलन है। ऐसे मनाया जाता है छठ पूजा का त्योहार, जानिए नहाए-खाए से लेकर सूर्य अर्घ्य तक का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत नियम की जानकारी
हिन्दू धर्म में सूरज तथा चंद्र की गतियों पर based fast व्रत और त्योहार festival को मनाए जाते हैं। प्राचीन समय के समय में सौरमास का ज्यादा महत्व था लेकिन परंपरा से बाद में चंद्र पर आधारित व्रतों का महत्व बढ़ गया। सूर्य पर आधारित व्रत और त्योहार में संक्रांति और छठ पूजा का ज्यादा चलन है।
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छठ पूजा का इतिहास | History of Chhath pooja in hindi
महाभारत काल में महान ऋषि धौम्य की सलाह के बाद, द्रौपदी ने पांडवों को कठिनाई से मुक्ति दिलाने के लिए छठ पूजा का सहारा लिया था। इस अनुष्ठान के माध्यम से, वह केवल तत्काल समस्याओं को हल करने में सक्षम रही ऐसा ही नहीं, लेकिन बाद में, पांडवों ने हस्तिनापुर (वर्तमान दिन दिल्ली) मैं अपने राज्य को पुनः प्राप्त किया था।
ऐसा कहा जाता है-
कुन्ती पुत्र कर्ण, सूर्य के पुत्र, जो कुरुक्षेत्र के महान युद्ध में पांडवों के खिलाफ लड़े थे, ने भी छठ माई का अनुष्ठान किया था।
पूजा की एक अन्य कथा भगवान श्री राम से जुड़ी है
ग्रंथों के अनुसार,
भगवान राम और उनकी धर्म पत्नी सीता ने उपवास किया था और 14 वर्ष के निर्वासन के बाद कार्तिक के महीने में सूर्य देव की पूजा-प्रार्थना की थी।
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छठ पूजा एक महत्वपूर्ण और पारंपरिक हिंदू उत्सव बन गया, जिसे हर साल उत्साह से मनाया जाता है।
इसलिए होती है छठ पूजा पर सूर्य की पूजा
सबसे ज्यादा लोकप्रिय विश्वास यह है-
कि भगवान सूर्य की पूजा कुष्ठ (कोढ) रोग जैसी बीमारियों को भी समाप्त करती है और परिवार की लम्बी आयु और समृद्धि सुनिश्चित करती है।
Chhath Puja in India: Vrat Katha Kahani Story Puja Vidhi in hindi
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"यह पूजा हमेशा अनुशासन, शुद्धता और सम्मान के साथ की जाती है। और जब एक बार एक परिवार छठ पूजा को आरम्भ कर देता है, तो ये उनका पहला कर्तव्य हो जाता है कि वह इस पूजा की परंपराओं को पीढ़ियों तक पारित करता रहे।"
इस दिन होती है Chhat puja
- छठ पूजा व व्रत का प्रारंभ हिन्दू माह कार्तिक महीनें के शुक्ल की चतुर्थी से होता है और षष्ठी तिथि को व्रत रखा जाता है और दूसरे दिन सप्तमी को इसका पारण होता है।
- आपको बता दें कि छठ पूजा 4 दिनों तक चलने वाला पर्व है जिसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से होती है और कार्तिक की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को ये पर्व समाप्त होता है।
- छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का प्रचलन और उन्हें अर्घ्य देने का विधान है। यह पर्व दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाता है।
छठ पूजा व्रत में ये नहाय और क्या खाय
प्रथम दिन नहाय खाये अर्थात साफ-सफाई और शुद्ध शाकाहारी भोजन सेवन का पालन किया जाता है, द्रितीय दिन खरना मतलब पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को गुड़ की खीर, घी लगी हुई रोटी और फलों का सेवन करते हैं।
Chath puja के पूजा की विधि
इसके बाद संध्या षष्ठी को अर्घ्य अर्थात संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है और विधिवत पूजन किया जाता है तब कई तरह के वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं। उसी दौरान प्रसाद भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है।
छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है
सूर्य देव की उपासना के बाद रात्रि में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है और अंत में दूसरे अर्थात अंति दिन उषा अर्घ्य अर्थात इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
फिर पूजा के बाद व्रत कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत को पूरा करती हैं, इसे पारण या परना कहा जाता है। ऐसे सम्पन्न होती है छठ पूजा।
शस्त्रों के अनुसार छठ पूजा के पावन पर्व का महत्व
शस्त्रों के अनुसार एक अन्य सूर्यदेव हैं जिन्हें प्रत्यक्ष सूर्यदेव से जोड़कर भी देखा जाता है। सूर्य देवता के पिता का नाम महर्षि कश्यप, माता का अदिति है। सूर्य की पत्नी का नाम संज्ञा है जो कि विश्वकर्मा की बेटी है।
सूर्य को संज्ञा से यम नामक पुत्र और यमुना नामक पुत्री तथा इनकी दूसरी पत्नी जिनका नाम छाया था, से इनको एक महान प्रतापी पुत्र हुए जिनका नाम शनि है।
शास्त्रों में छठ माई का महत्व
इसी तरह शास्त्रों में माता षष्ठी देवी को भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री माना गया है। इन्हें ही मां कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि के दिन होती है।
षष्ठी देवी मां को ही पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहते हैं। छठी माता की पूजा का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है।
माता षष्ठी देवी की पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार
मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत के कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप ने विशाल यज्ञ करवाया तब रानी मालिनी ने एक शिशु को जन्म दिया लेकिन वह बच्चा मृत पैदा हुआ।
तभी माता षष्ठी (छठ माई) प्रकट हुई और उन्होंने अपना परिचय देते हुए मृत पुत्र को आशीष देते हुए हाथ लगाया,
जिससे वह जीवित हो गया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी दवी की आराधना की। तभी से पूजा का प्रचलन प्रारंभ हुआ।
कहां कहां मनाया जाता है छठ पूजा का पावन पर्व
यह मुख्य रूप से लोकपर्व है जो उत्तर भारत के राज्य पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के लोग ही मनाते हैं। यहां के लोग देश में कहीं भी हो वे छठ पर्व की पूजा करते हैं।